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ईएमआई डिफॉल्ट करने के ये हो सकते है गंभीर परिणाम

ईएमआई डिफॉल्ट करने के ये हो सकते है गंभीर परिणाम
Nikita
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ऐसे कई लोग हैं जो लोन का सहारा अपनी कई तरह की वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए लेते है। लेकिन कई बार फाइनेंशियल इमरजेंसी के चलते लोग अपनी लोन EMI समय पर नहीं चूका पाते है जिसके चलते उन्हें  कई गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं जैसे: 

क्रेडिट स्कोर में गिरावट 

बैंक और NBFCs आपके लोन और क्रेडिट कार्ड से जुड़ी जानकारी ट्रांसयूनियन सिबिल और एक्सपीरियन जैसे क्रेडिट ब्यूरो को हर महीने देते हैं। जिसके आधार पर क्रेडिट ब्यूरो आपका क्रेडिट स्कोर और क्रेडिट रिपोर्ट तैयार करते हैं। ऐसे में अगर आप एक भी लोन EMI या क्रेडिट कार्ड बिल का भुगतान नहीं करते हैं तो आपका क्रेडिट स्कोर के कुछ अंको में गिरावट आ जाएगी। भुगतान में चूक की जानकारी आपकी क्रेडिट रिपोर्ट में भी दी जाएगी जिसे देखकर बैंक और NBFCs भविष्य में आपको लोन या क्रेडिट कार्ड देने में संकोच करेंगे या उच्च ब्याज दर पर लोन देंगे। 

लोन के प्रकार और अन्य कारकों के आधार पर यदि आप एक भी ईएमआई के भुगतान में चूक और बकाया राशि के भुगतान में 90 दिनों से अधिक की देरी करते हैं तो बैंक और लोन संस्थान इसे क्रेडिट ब्यूरो को एक बड़ी चूक के रूप में रिपोर्ट करते है। परिणामस्वरूप, आपके क्रेडिट प्रोफ़ाइल पर छोटे या बड़े डिफ़ॉल्ट के रूप में दिखाई देता है। जिससे आपका क्रेडिट स्कोर प्रभावित तो होता ही है साथ ही यह आपकी क्रेडिट रिपोर्ट में NPA के रूप में दिखाई देगा। आप आसानी से इसमें सुधार कर सकते हैं जैसे कि यह सुनिश्चित करना कि आप छूटी हुई ईएमआई का भुगतान अगली तय तारीख पर कर दें और ध्यान दें कि देर से भुगतान दोबारा न हो।

दंड और जुर्माना

लोन ईएमआई के भुगतान में देरी करते है तो आपको लेट पेमेंट फीस देनी पड़ सकती है। यह लेट पेमेंट फीस आमतौर पर आपके लोन का 1 से 2 फ़ीसदी तक होती है जो सभी बैंकों में अलग-अलग हो सकती है। इसके साथ ही आपको बैंक की तरफ से एक मैसेज भेजा जाता है जिसमे जल्द-से-जल्द ईएमआई भरने के लिए कहा जाता है। ईएमआई में देरी होने पर बैंक सामान्य ब्याज के अलावा पेनल्टी चार्ज भी लगा सकते हैं। इसलिए महीने की तय ईएमआई का भुगतान करना न भूले। 

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आपका लोन हो जाएगा नॉन-परफॉर्मिंग एसेट (NPA) 

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के नियमों के मुताबिक अगर लोन लेने वाले आवेदक ने लोन की किस्त 90 दिनों तक नहीं चुकाई है, तो उस लोन को NPA घोषित कर दिया जाता है। उदाहरण के लिए मान लीजिए यदि आपने बैंक से 2 लाख का लोन लिए हैं और आप हर महीने 2000 की EMI दे रहें हैं। लेकिन यदि आप 90 दिनों से अधिक समय तक अपनी  EMI का भुगतान नहीं करते हैं, तो आपका लोन NPA के रूप में गिना जाएगा। 

ईएमआई डिफॉल्ट को दो भागों में बांटा जाता है: छोटी डिफॉल्ट और बड़ी डिफॉल्ट। ईएमआई में 90 दिनों तक की देरी मामूली डिफ़ॉल्ट (छोटी डिफॉल्ट) श्रेणी में आती है, जबकि लगातार तीन ईएमआई भुगतान न करना एक बड़ी चूक है। छोटे डिफॉल्ट में बैंक और लोन संस्थान जुर्माना लगाते हैं, नोटिस भेजते हैं और क्रेडिट ब्यूरो को देरी की रिपोर्ट करते हैं।

बड़े डिफॉल्ट होने पर सरफेसी अधिनियम लागू होता है जो 2002 में पास हुआ था। इस एक्ट के मुताबिक, अगर लोन आवेदक लिए गए लोन और उसकी ईएमआई का भुगतान समय पर नहीं करता है तो बिना कोर्ट की मंजूरी के बैंक और लोन संस्थानों के पास लोन लेने वाले की संपत्ति बेचकर अपना पैसा वसूल करने का पूरा अधिकार है। ये सिक्योर्ड लोन के मामले में किया जाता है। वहीं दूसरी तरफ अनसिक्योर्ड लोन के मामले में लोन लेने के लिए आवेदकों को कोई गारंटी/ सिक्योरिटी जमा करने या कुछ गिरवी रखने की ज़रूरत नहीं होती है। पर यदि आपने अपनी ईएमआई का भुगतान नहीं किया है, तो बैंक ये कदम उठा सकती हैं:

  • बैंक ब्याज दर बढ़ा देगा और आपके लोन पर एक्स्ट्रा चार्ज लगाएगा। 
  • इसके साथ ही ईएमआई डिफॉल्ट से आवेदक का क्रेडिट स्कोर कम हो जाएगा, जिससे भविष्य में लोन मिलना मुश्किल हो सकता है।
  • कुछ बैंक अपना पैसा वापस लेने के लिए कलेक्शन एजेंसियों की मदद लेती हैं जो आपसे पैसे वसूलती है इसके लिए ये एजेंसियां आपको कॉल कर सकती हैं, लेटर लिख सकती हैं या घर आकर पूछताछ कर सकती हैं।
  • इसके आलावा कुछ बैंक जिन्हें अपना पैसा नहीं मिलता है वे डिफॉल्ट करने वाले आवेदक पर मुकदमा करते हैं।

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निष्कर्ष 

बार-बार लोन EMI का भुगतान करने से चूकना आपको EMI डिफॉल्टर के रूप में चिह्नित कर सकता हैं जिससे आपकी वित्तीय स्थिति पर असर पड़ सकता है। बैंक और लोन संस्थान डिफॉल्टरों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं और क्रेडिट ब्यूरो को रिपोर्ट कर सकते हैं, जिससे क्रेडिट स्कोर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ग्राहक को अपनी EMI चुकाने के लिए सभी उपलब्ध विकल्पों का पता लगाना चाहिए, जैसे लोन संस्थानों के साथ बातचीत करना, सेटलमेंट का विकल्प और लोन EMI से जुड़ी काउन्सलिंग सर्विस लेना आदि।

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