आप अपने क्रेडिट कार्ड से कितना खर्च कर सकते है, इसकी एक सीमा होती है, ये सीमा ही क्रेडिट लिमिट कहलाती है। क्रेडिट लिमिट के माध्यम से बैंक आपकी खरीदारी क्षमता को कंट्रोल करते हैं। क्रेडिट कार्ड जारी करते समय ही क्रेडिट लिमिट निर्धारित कर दी जाती है। लेकिन सवाल ये है कि बैंक क्रेडिट लिमिट निर्धारित कैसे करते हैं, यानी वो कौन से फैक्टर्स हैं जो क्रेडिट लिमिट के निर्धारण में मददगार होते हैं। तो चलिए इस आर्टिकल में इसी सवाल का जवाब जानते हैं:
क्रेडिट लिमिट निर्धारित करने वाले फैक्टर्स
1. क्रेडिट हिस्ट्री
ये वो पहला फैक्टर है जिसके आधार पर बैंक आपके क्रेडिट कार्ड एप्लीकेशन को स्वीकार या अस्वीकार करते हैं। साथ ही इसके आधार पर ही बैंक क्रेडिट लिमिट भी निर्धारित करते हैं। क्योंकि क्रेडिट हिस्ट्री से पता चलता है कि आपको कार्ड देने में कितना जोखिम है और आपको कितनी लिमिट तक का क्रेडिट कार्ड देना चाहिए।
दरअसल क्रेडिट हिस्ट्री ये दिखाता है कि आपका पिछला कर्ज भुगतान का रिकॉर्ड कैसा रहा है। 750 या उससे अधिक क्रेडिट स्कोर आपको अनुशासित दिखाता है, जिसके चलते आपको उच्च क्रेडिट लिमिट वाला कार्ड मिल सकता है। दूसरी तरफ कम क्रेडिट स्कोर वाले आवेदक को ज्यादा क्रेडिट लिमिट वाला कार्ड देने में बैंक संकोच करेंगे क्योंकि जोखिम अधिक होगा। वहीं, जिनकी क्रेडिट हिस्ट्री नहीं है उन्हें भी नुकसान है, उनके पास कोई डेटा ही नहीं जिस पर बैंक भरोसा कर सकें। इसलिए क्रेडिट कार्ड प्रदाता आवेदक के बारे में जानने के लिए ट्रांसयूनियन सीबिल (CIBIL), एक्सपेरिया, CRIF हाईमार्क (Highmark) और इक्विफेक्स जैसे क्रेडिट ब्यूरो से संपर्क करते हैं और फिर इसके आधार पर ही क्रेडिट लिमिट निर्धारित करते हैं।
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2. आय और डेब्ट टू इनकम रेश्यो
कार्डहोल्डर की आय/इनकम क्रेडिट लिमिट निर्धारण में अहम भूमिका निभाती है। बैंक कार्डहोल्डर की भुगतान क्षमता का आकलन करने के लिए उसकी मासिक और वार्षिक कमाई देखते हैं। अधिक आय वाले व्यक्ति को उच्च क्रेडिट लिमिट मिलने की अधिक संभावना हो सकती है क्योंकि वह अपने क्रेडिट कार्ड बिल का भुगतान करने में सक्षम हो सकते हैं। हालांकि केवल आय के आधार पर बैंक क्रेडिट लिमिट निर्धारित नहीं करते, बल्कि डेब्ट टू इनकम रेश्यो भी देखते हैं। जिसका मतलब है कि कार्डहोल्डर अपने इनकम का कितना हिस्सा कर्ज के भुगतान में खर्च करता है। डेब्ट टू इनकम ज्यादा होने पर क्रेडिट लिमिट कम हो सकती है।
3. दूसरे क्रेडिट कार्ड की लिमिट
अगर आपके पास पहले से कोई क्रेडिट कार्ड है तो दूसरे क्रेडिट कार्ड की लिमिट कितनी होगी यह पहले कार्ड भी निर्भर करेगा। उदाहरण से समझें- अगर आपके पास पहले से 50,000 रु. क्रेडिट लिमिट वाला कार्ड है तो दूसरा कार्ड 2,00,000 रु. की लिमिट वाला मिलना मुश्किल हो सकता है। हालांकि अगर आप पहले से किसी बैंक के एलिट ग्रुप के सदस्य हैं तो हाई क्रेडिट लिमिट वाला कार्ड मिलना आसान है।
4. क्रेडिट कार्ड का प्रकार
विभिन्न प्रकार के क्रेडिट कार्ड अलग-अलग फीचर्स के साथ आते हैं। बैंक के पास एंट्री लेवल और प्रीमियम क्रेडिट कार्ड होते हैं। बैंक अपनी इंटर्नल पॉलिसी के आधार पर हर क्रेडिट कार्ड की अधिकतम क्रेडिट लिमिट तय कर सकते हैं। हालांकि आमतौर पर प्रीमियम क्रेडिट कार्ड की क्रेडिट लिमिट तुलनात्मक रूप से अधिक होती है। क्योंकि यह कार्ड अधिक आय वाले लोगों को ही ऑफर किया जाता है। जबकि अन्य क्रेडिट कार्ड के लिए कोई भी आवेदन कर सकता है। इसी तरह अगर आपने फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) के बदल सिक्योर्ड क्रेडिट कार्ड के लिए आवेदन किया है तो उसकी क्रेडिट लिमिट एफडी राशि के आधार पर मिलेगी। आमतौर पर ऐसे सिक्योर्ड क्रेडिट कार्ड की क्रेडिट लिमिट एफडी राशि की 80%-90% होती है।
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निष्कर्ष
क्रेडिट लिमिट निर्धारित करने का कोई एक फिक्स मानदंड नहीं है। हालांकि आमतौर पर उपरोक्त बताएं गए तरीके क्रेडिट लिमिट के निर्धारण में अहम भूमिका निभाते हैं। बैंक आवेदक के आधार पर क्रेडिट लिमिट निर्धारित कर सकते हैं। या फिर स्पेनडिंग बिहेवियर जैसे- आप आमतौर पर ग्रॉसरी खरीदारी कहां से करते हैं, क्या आप घूमने-फिरने पर खर्च करते हैं आदि के आधार पर भी क्रेडिट लिमिट निर्धारित हो सकता है।
उदाहरण से समझें- अगर आप ट्रैवल के लिए एक को-ब्रांडेड क्रेडिट कार्ड लेना चाहते हैं तो बैंक या कार्ड देने वाली कंपनी आपका पिछला रिकार्ड चेक करेगी कि आपने ट्रैवल पर कितना खर्च किया है, इसके आधार पर ही क्रेडिट लिमिट निर्धारत करेगी।
इसके अलावा अगर कार्डहोल्डर अपने क्रेडिट लिमिट का बार-बार अधिकतम इस्तेमाल करता है और समय से बिल का भुगतान भी कर देता है, तो बैंक ऐसे कार्डहोल्डर को उसकी क्रेडिट लिमिट बढ़ाने का ऑफर कर सकता है।