आज के समय में नो-कॉस्ट ईएमआई (No Cost EMI) कई लोगों का पसंदीदा भुगतान विकल्प बन गया है, क्योंकि इस सुविधा की मदद से लोग महंगे से महंगा सामान आसान मासिक किस्तों में खरीद सकते हैं। ऊपरी तौर पर देखने में यह फायदे का सौदा लग सकता है, लेकिन इसके बारे में RBI का सर्कुलकर कुछ अलग कहानी बयां करता है। RBI का कहना है कि कोई लोन ब्याज मुक्त नहीं होता है, ऐसे में नो-कॉस्ट ईएमआई की सुविधा का चयन करने से पहले सावधानी बरतना ज़रूरी है। तो चलिए जानते हैं कि क्या वाकई नो-कॉस्ट EMI बगैर किसी कॉस्ट के आती है, लेकिन इससे पहले इसकी अवधारणा को समझ लेते हैं।
आखिर क्या है ‘नो-कॉस्ट ईएमआई’?
किसी प्रोडक्ट को कुछ महीने की किस्त पर बिना ब्याज के खरीदने की सुविधा है नो-कॉस्ट ईएमआई। इस सुविधा के ज़रिए कस्टमर को अतिरिक्त ब्याज का भुगतान किए बगैर किसी प्रोडक्ट मासिक किस्तों में खरीदने का विकल्प मिलता है। वैसे तो इस सुविधा के ज़रिए आप 3,6,9 या 12 महीने की भुगतान अवधि चुन सकते हैं। कुछ मामलों में इससे लंबी अवधि के लिए भी इस सुविधा का लाभ मिलता है। कस्टमर अक्सर नो-कॉस्ट ईएमआई का इस्तेमाल कंज्यूमर ड्यूरेबल (Consumer Durable) प्रोडक्ट जैसे लैपटॉप, फ्रिज, वाशिंग मशीन, AC आदि खरीदने के लिए करते हैं।
आमतौर पर, यह सुविधा बैंकों, क्रेडिट कार्ड (Credit Card) कंपनियों या डेबिट कार्ड पर ऑफर की जाती हैं। बैंक या क्रेडिट कार्ड जारीकर्ता के आधार सुविधाएं अलग-अलग हो सकती हैं। कुछ में इस सुविधा का लाभ उठाने के लिए डाउनपेमेंट नहीं करना होता, तो कुछ में करना होता है। गौर करने वाली बात यह है कि, नो-कॉस्ट ईएमआई का विकल्प चुनने पर कुछ बैंक फिक्स्ड और नॉन-रिफंडेबल प्रोसेसिंग फीस चार्ज करते हैं। आजकल लोगों के बीच नो-कॉस्ट ईएमआई का चलन काफी बढ़ता जा रहा है।
इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अमेज़न के “ग्रेट इंडियन फेस्टिवल सेल, 2023” के दौरान चार में से तीन प्रोडक्ट नो-कॉस्ट ईएमआई के माध्यम से खरीदे गए थे।
नो-कॉस्ट ईएमआई, रेगुलर ईएमआई की तरह ही काम करती है। हालांकि, ऐसा कहा जाता है कि इस पर आपको ब्याज नहीं भरना पड़ता। लेकिन क्या सचमुछ ये बात सही है या नहीं, जानने के लिए आरबीआई के इस सर्कुलर को पढ़ते हैं।
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‘नो-कॉस्ट ईएमआई’ के मामले में RBI का क्या कहना है?
साल 2013 में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने एक सर्कुलर जारी किया जिसमें कहा कि “क्रेडिट कार्ड आउटस्टैंडिंग्स पर जीरो पर्सेंट ईएमआई स्कीम में ब्याज अक्सर प्रोसेसिंग फीस के रूप में वसूला जाता है। इसी तरह, कुछ बैंक लोन प्राप्त करने में होने वाले खर्च को प्रोडक्ट से वसूल रहे हैं। चूंकि ज़ीरो पर्सेंट ब्याज जैसा कुछ होता ही नहीं है, ऐसे में प्रोसेसिंग फीस और ब्याज को प्रोडक्ट/सेगमेंट के अनुसार एक समान रखा जाना चाहिए, नो-कॉस्ट ईएमआई जैसी योजनाओं का उद्देश्य सिर्फ कस्टमर्स को लुभाना और उनका शोषण करना होता है।”
RBI के इस स्टेटमेंट से यह तो साफ है कि नो-कॉस्ट ईएमआई कुछ नहीं, बस एक मार्केटिंग स्ट्रैटजी है। और इसे ऑफर करने वाले प्लेटफॉर्म किसी न किसी रूप में आपसे ब्याज ले लेते हैं, बस आपको यह साफ तौर पर बताया नहीं जाता।
हमारी राय यह है….
ऐसे में, आप यह जान गए होंगे कि नो-कॉस्ट ईएमआई बस कस्टमर्स को लुभाने का एक तरीका है। कोई भी प्रोडक्ट खरीदने से पहले अलग-अलग प्लेटफॉर्म और स्टोर्स पर उसकी कीमत की तुलना करें। ध्यान रहें, समान खरीदने से पहले उससे जुड़े नियम और शर्तों को पढ़ें और प्रोसेसिंग फीस व अन्य चार्जे़स को चेक ज़रूर करें।