होम लोन में राशि बड़ी होती है और भुगतान अवधि लंबी, इसलिए ये एक लम्बे समय की ज़िम्मेदारी होती है। इसे लेने से पहले इससे जुड़े कई सारे पहलूओं पर ध्यान देने की ज़रूरत होती है। जिसमें होम लोन इंटरेस्ट रेट (Home Loan Interest Rate) और ईएमआई सबसे महत्वपूर्ण फैक्टर्स हैं। इंटरेस्ट रेट बढ़ने से होम लोन की ईएमआई और भुगतान की जाने वाली कुल लोन राशि पर सीधा असर पड़ता है, इस लेख में हम ऐसे ही फैक्टर्स के बारे में जानेंगे जो आपके होम लोन इंटरेस्ट रेट को प्रभावित कर सकते हैं।
होम लोन इंटरेस्ट रेट को प्रभावित करने वाले फैक्टर्स
1. क्रेडिट या सिबिल स्कोर
बैंक क्रेडिट स्कोर के आधार ये अंदाज़ा लगाते हैं कि किसी आवेदक को लोन देने में कितना जोखिम है। 750 या ज़्यादा क्रेडिट स्कोर वाले व्यक्तियों को कम जोखिमभरा माना जाता है, इसलिए उन्हें आसानी से लोन मिलने की संभावना अधिक होती है और साथ ही लोन पर कम ब्याज दर का भी ऑफर मिल सकता है।
इसलिए होम लोन लेने से पहले अपनी क्रेडिट रिपोर्ट चेक करें और स्कोर कम हो तो उसे बढ़ाने पर काम करें। इसके लिए समय पर क्रेडिट कार्ड बिलों और मौजूदा ईएमआई का भुगतान करें, कम समय में कई लोन या क्रेडिट कार्ड के लिए अप्लाई ना करें, बार-बार अपनी पूरी क्रेडिट लिमिट का उपयोग न करें और समय-समय पर अपनी क्रेडिट रिपोर्ट चेक करते रहें ताकि उसमें कोइ गलत जानकारी मिलने पर आप क्रेडिट ब्यूरो को सूचित कर सकें।
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2. लेंडर बेंचमार्क रेट
आरबीआई के निर्देशानुसार बैंकों को फ्लोटिंग होम लोन इंटरेस्ट रेट को बाहरी बेंचमार्क से लिंक करना अनिवार्य है। ये बेंचमार्क रेपो रेट, 3 से 6 माह के ट्रेजरी बिल रेट्स या फिर FBIL द्वारा निर्धारित कोई भी रेट हो सकती है। हालांकि ये नियम HFCs पर लागू नहीं होता है, और इसलिए ही वो अक्सर अपने होम लोन की इंटरेस्ट रेट को इंटरनल बेंचमार्क से लिंक कर देते हैं।
बेंचमार्क रेट का सीधा संबंध होम लोन ईएमआई से होता है। उदाहरण से समझें- अगर आपने फ्लोटिंग इंटरेस्ट रेट पर होम लोन लिया है और वह रेपो रेट से लिंक्ड है, तो जब भी आरबीआई रेपो रेट बढ़ाएगा आपके लोन की ब्याज दर बढ़ेगी और रेपो रेट घटने पर कम होगी।
3. इंटरेस्ट रेट का प्रकार
होम लोन के लिए इंटरेस्ट रेट तीन तरह के होते हैं, फिक्स्ड, फ्लोटिंग और हाईब्रिड। लोन लेने से पहले लेंडर तीनों विक्लपों में से कोई एक ऑप्शन चुन सकते हैं। बैंक आमतौर पर फ्लोटिंग इंटरेस्ट रेट ऑफर करते हैं। फिक्स्ड इंटरेस्ट रेट चुनने पर लोन की ईएमआई पूरे लोन टैन्योर में फिक्स रहती है। वहीं, फ्लोटिंग इंटरेस्ट रेट किसी बेंचमार्क से जुड़ी होती है, जैसे रेपो रेट और बेंचमार्क में बदलाव आने पर फ्लोटिंग इंटरेस्ट रेट में भी बदलाव आता है। फ्लोटिंग इंटरेस्ट रेट कम भी हो सकती है और ज़्यादा भी। दूसरी ओर हाईब्रिड लोन के मामले में इंटरेस्ट रेट भुगतान अवधि में कुछ समय के लिए फिक्सड होती है, और कुछ समय के लिए फ्लोटिंग।
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4. एलटीवी रेश्यो
आप जिस प्रॉपर्टी के लिए होम लोन ले रहे हैं, बैंक उसकी वैल्यू का कितना प्रतिशत लोन देगा वही उसका लोन टू वैल्यू रेश्यो (LTV Ratio) होगा। आरबीआई के नियमों के अनुसार, बैंक खरीदी जा रही प्रॉपर्टी की वैल्यू का 90% तक लोन दे सकते हैं। उदाहरण से समझें- आप 1 करोड़ की प्रॉपर्टी खरीदना चाहते हैं। आपने 30 लाख रुपये के डाउन पेमेंट की व्यवस्था की है और शेष राशि होम लोन के माध्यम से चुकाना चाहते हैं। ऐसे में आपका एलटीवी रेश्यो 70% होगा।
हालांकि एलटीवी रेश्यो लोन राशि के आधार पर निर्धारित होता है। जैसे- 30 लाख के लिए LTV रेश्यो 90 % तक हो सकता है। 30 से 75 लाख रुपये लोन अमाउंट के लिए एलटीवी रेश्यो 80% से अधिक नहीं हो सकता है और 75 लाख रुपये से अधिक लोन के लिए अधिकतम एलटीवी रेश्यो 75% तय किया गया है। आप जितनी ज़्यादा डाउनपेमेंट करते हैं, एलटीवई रेश्यो उतना कम होता है और बैंक के लिए जोखिम भी उतना ही कम होता है। बैंक प्रॉपर्टी की वैल्यू के हिसाब से जितना ज़्यादा लोन देता है उसका जोखिम भी उतना ही ज़्यादा बढ़ता जाता है, और जोखिम जितना ज़्यादा होता है ब्याज दर भी उतनी ज़्यादा ही बढ़ सकती है।
5. जॉब सिक्योरिटी
लोन डिफॉल्ट के चांसेज कम करने के लिए बैंक किसी को लोन देने से पहले उसकी जॉब प्रोफाइल चेक करता है। जैसे वह किस कंपनी में काम करता है, किस पोस्ट पर है उसकी सैलरी कितनी है आदि। अच्छी कंपनी/ संस्थान में काम करने वाले व्यक्ति को कम इंटरेस्ट रेट पर आसानी से लोन मिलने की संभावना बढ़ जाती है, उनकी तुलना में जो सेल्फ इंप्लॉइड हैं क्योंकि सेल्फ इंप्लॉइड लोगों की इनकम स्थिर नहीं होती यानी वो किसी महीने कम तो किसी महीने ज़्यादा हो सकती है और इस वजह से ईएमआई में डिफ़ॉल्ट का ख़तरा ज़्यादा होता है।
6. प्रॉपर्टी लोकेशन का महत्व
होन लोन का इंटरेस्ट रेट कोलैटरल (गिरवी रखे प्रॉपर्टी) की क्वालिटी पर भी निर्भर करता है। हाई वैल्यू और नई प्रॉपर्टी पर बैंक या एचएफसी कम इंटरेस्ट रेट पर भी लोन देने के लिए तैयार हो जाते हैं क्योंकि इसमें जोखिम कम होता है। वहीं, पुराने या खराब स्थिति वाली प्रॉपर्टी पर पर बैंक हाई इंटरेस्ट रेट चार्ज कर सकते हैं। प्रॉपर्टी की लोकेशन क्या है, इसका भी इंटरेस्ट रेट पर प्रभाव पड़ता है।
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7. भुगतान करने की क्षमता
उधारकर्ता की भुगतान क्षमता को जानने के लिए बैंक\ HFCs उसकी कंरट डेट ऑब्लिगेशन को चेक करते हैं। बैंक उन लोगों को लोन देना पसंद करते हैं, जो अपनी कुल मासिक इनकम का 50% से 55% ही ईएमआई भुगतान (वर्तमान ईएमआई और लिये जाने वाले लोन की ईएमआई को मिलकर) में खर्च करते हैं, इसे ईएमआई टू एनएमआई रेश्यो भी कहते हैं। अगर आपका ईएमआई टू एनएमआई रेश्यो 50-55% से ज़्यादा है तो आपको लोन मिलना मुश्किल है, क्योंकि डिफ़ॉल्ट होने की संभावना बढ़ जाती है। और अगर बैंक लोन देने को तैयार भी हो जाता है तो ब्याज दर ज़्यादा होगी, क्योंकि ऐसे मामलों में लोन देने में बैंक का जोखिम बढ़ जाता है।