अगर आप अपनी हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी द्वारा दी जाने वाली सेवाओं जैसे क्लेम प्रोसेस, कस्टमर सर्विस और प्रीमियम आदि से संतुष्ट नहीं होते, तब आप पॉलिसी को पोर्ट कर सकते हैं। हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी पोर्ट कराने से मतलब अपने हेल्थ इंश्योरेंस को दूसरी कंपनी में ट्रांसफर कराने से है। साल 2011 में बीमा नियामक इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (IRDAI) ने हेल्थ इंश्योरेंस को पोर्ट कराने की सुविधा प्रदान की थी। हेल्थ इंश्योरेंस को पोर्ट कराने पर आप नीचे दिए गए लाभ प्राप्त कर सकते हैं:-
- लाभ बरकरार रहते हैं: पॉलिसी पोर्ट कराने के बावजूद नो-क्लेम बोनस (NCB) और वेटिंग पीरियड जैसे लाभ बने रहते हैं। दरअसल, अधिकतर हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी में कुछ नियम होते हैं जैसे अगर कस्टमर को पहले से कोई बीमारी है, तो उन्हें वेटिंग पीरियड के बाद कवर किया जाता है। यानी कि पॉलिसी लेने के 2 या 4 साल बाद ही प्री-एग्जिस्टिंग डिजीज कवर किए जाते हैं। ऐसे में अगर पॉलिसी को दो साल हो सकते हैं और आप उसे पोर्ट कराते हैं, तो आपकी पॉलिसी को नई पॉलिसी की तरह ट्रिट नहीं किया जाएगा। ऐसे में अगर नई कंपनी में 2 साल का वेटिंग पीरियड है और आप यह 2 साल पूरे कर चुके हैं तो आपको वो सभी फायदें मिलेंगे जो 2 साल बाद मिलते हैं।
- बेहतर सेवाएं: अपनी पॉलिसी को पोर्ट कर आप बेहतर सेवाओं का लाभ उठा सकते हैं। किसी भी पॉलिसी में एक निश्चित स्थान में मौजूदा कुछ विशेष अस्पतालों में ही सुविधा दी जाती है। अगर आप किसी नई जगह या नए शहर में शिफ्ट कर रहे हैं तो आपको ऐसी कंपनी में अपनी पॉलिसी को स्विच कराने की सुविधा मिलती है जो उस जगह के अस्पतालों में अपनी सुविधाएं प्रदान करती हो।
- कम प्रीमियम का लाभ: हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी कस्टमर्स को अपनी मौजूदा हेल्थ इंश्योरेंस को किसी ऐसी कंपनी में स्विच करने की सुविधा देती हैं, जो कम प्रीमियम पर समान या बेहतर सेवाएं प्रदान कर रहा हो।
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हेल्थ इंश्योरेंस पोर्ट करने से पहले ये ज़रूरी बातें भी जान लें
रिन्यूअल के दौरान ही पोर्ट करा सकते हैं: आप अपनी पॉलिसी को कभी भी बीच में या अचानक पोर्ट नहीं करा सकते। पॉलिसी को रिन्यूअल की तारीख से ठीक पहले पोर्ट कराया जा सकता है। पॉलिसी को पोर्ट कराने के लिए रिन्यूअल की तारीख से कम से कम 45 दिन पहले नई कंपनी और मौजूदा कंपनी को इसकी जानकारी देनी होती है। ऐसे में हो सकता है पॉलिसी को पोर्ट कराने के लिए आपको महीनों इंतज़ार करना पड़े।
- समान पॉलिसी में ही पोर्ट करा सकते हैं: हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी की सुविधा सिर्फ समान इंश्योरेंस प्लान पर लागू होती है।
अधिक प्रीमियम भरना पड़ सकता है: अगर आप अपनी पॉलिसी को किसी ऐसी पॉलिसी में पोर्ट कराते हैं जो अधिक सुविधाएं और कवरेज देती हो, तो इसके लिए आपको अधिक प्रीमियम भरना पड़ सकता है।
- कुछ बेनिफिट नहीं मिलते: कई बार पोर्ट करने पर कुछ बेनिफिट्स नई पॉलिसी में नहीं मिलते। हर हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी के प्लान और उनमें मिलने वाले लाभ अलग-अलग होते हैं। ऐसे में यह संभावना होती है कि जो लाभ आपको पिछली कंपनी में मिल रहे थे, उनमें से कुछ नई कंपनी प्रदान न कर रही हो। उदाहरण के लिए आप ग्रुप प्लान से इंडिविजुअल प्लान में पोर्ट कराते हैं तो कुछ लाभ खो सकते हैं।
- वेटिंग पीरियड एक कंपनी से दूसरे में अलग हो सकता है: ऐसा भी हो सकता है कि आपकी मौजूदा कंपनी में प्री-एग्जिस्टिंग डिजीज कवरेज के लिए वेटिंग पीरियड 2 साल का हो, लेकिन नई कंपनी में यह 3 साल का हो सकता है, जिससे आपको 1 साल और इंतेज़ार करना पड़ सकता है।
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आपको अपना हेल्थ इंश्योरेंस कब पोर्ट करना चाहिए?
अपने हेल्थ इंश्योरेंस को पोर्ट कराने का फैसला काफी सोच-विचार कर लेना चाहिए। जिस कंपनी में पोर्ट करा रहें हैं उसके नियम व शर्तें, प्लान और प्रीमियम आदि को चेक करना न भूलें। इस बात का ध्यान रखें कि अगर आप सिर्फ अतिरिक्त लाभ के लिए हेल्थ इंश्योरेंस पोर्ट करा रहें हैं तो इससे आपका प्रीमियम भी बढ़ सकता है। लेकिन अगर आप मौजूदा कंपनी के क्लेम प्रोसेस या मिलने वाले बेनिफिट या प्रीमियम से खुश नहीं है तो अपनी पॉलिसी को पोर्ट करने का फैसला ले सकते हैं। अगर देखा जाए तो हेल्थ इंश्योरेंस पोर्ट कराने में मिलने वाले लाभ इसकी कमियों से काफी अधिक हैं। लेकिन फिर भी इसे लेने या न लेने का फैसला अपनी ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए लेना चाहिए।
- कंपनी से खराब सर्विस मिलने लगे: ऐसा हो सकता है कि एक समय के बाद आपको अपनी हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी से बेहतर सेवाएं मिलना बंद हो जाए। हो सकता है आप कंपनी की सेवाओं, जटिल क्लेम सेटलमेंट, कवरेज, कस्टमर सर्विस, रूम किराया सीमा कम होना, पॉलिसी में कम लाभ आदि से संतुष्ट नहीं है, तो इसे पोर्ट कराने का फैसला ले सकते हैं।
- मौजूदा कंपनी से आपको अतिरिक्त कवर न मिल रहा हो: अगर आपकी मौजूदा हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी आपको किसी विशेष बीमारी के लिए अतिरिक्त कवर नहीं दे पा रही, तो ऐसे में आपको अपनी पॉलिसी को पोर्ट कराने का विचार करना चाहिए।
- आपको अन्य कंपनी से बेहतर सेवाएं मिल रही हों: अगर आपको मौजूदा हेल्थ इंश्योरेंस प्रोवाइडर की तुलना में अन्य कंपनी से कम प्रीमियम, होस्पिटल रूम रेंट या बेहतर क्लेम प्रोसेस जैसी सेवाएं मिल रही हैं, तो आप पोर्टेबिलिटी का लाभ उठा सकते हैं।
- ऐसे नियम व शर्तें जिनकी आपको जानकारी नहीं थी: कई बार पॉलिसी खरीदते समय कुछ छुपे हुए नियम और शर्तों के बारे में कस्टमर को जानकारी नहीं होती। आगे चलकर क्लेम या इमरजेंसी के समय यह शर्तें मुश्किल खड़ी कर सकती हैं। ऐसे में आप ऐसी कंपनी से हेल्थ इंश्योरेंस प्रोवाइडर के पास जाने का विचार कर सकते हैं जो इन शर्तों को लेकर ज्यादा ट्रांसपेरेंट हो।
हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी रिक्वेस्ट रिजेक्ट भी हो सकती है
हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी के पास पोर्टेबिलिटी रिक्वेस्ट को एक्सेप्ट या रिजेक्ट करने का अधिकार होता है। आमतौर पर इंश्योरेंस कंपनियां सीनियर सिटीज़न के मामले में पॉलिसी को स्वीकार करने से कतराती हैं। ऐसा इसलिए उम्र बढ़ने के साथ ही अधिक बीमार होने की संभावनाएं भी बढ़ जाती है। हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी रिक्वेस्ट के रिजेक्ट होने के मामले में आप एक टॉप-अप हेल्थ कवर खरीद सकते हैं जो आपके बेस प्लान पर इंश्योरेंस पर अतिरिक्त कवर प्रदान करता है। टॉप-अप हेल्थ कवर में अतिरिक्त लाभ तो मिलता ही है, साथ ही यह रेगुलर मेडिक्लेम खरीदने की तुलना में सस्ता भी पड़ता है।