इस दौड़-भाग वाली जिंदगी में स्वास्थ्य से संबंधित समस्याएं होना आम बात हो गई है। ऐसे में अगर आप बीमार पड़ जाएं तो हॉस्पिटल, दवाईयों और अन्य संबंधित खर्चें आपकी जेब ढीली कर देते हैं। इससे निपटने के लिए हेल्थ इंश्योरेंस काफी मददगार साबित हो सकता है। लेकिन हेल्थ इंश्योरेंस को क्लेम करने से संबंधित कुछ नियम व शर्तें भी है, जैसे- मोरेटोरियम पीरियड, वेटिंग पीरियड और सर्वाइवल पीरियड आदि। इस लेख में हम मोरेटोरियम पीरियड क्या है (Moratorium Period in Health Insurance) और ये पॉलिसी होल्डर को कैसे प्रभावित करता है इस बारे में जानेंगे:
क्या होता है मोरेटोरियम पीरियड ?
ये वो समयावधि है, जिसमें पॉलिसी होल्डर लगातार (मासिक या वार्षिक आधार पर) उस समयावधि तक बीमा प्रीमियम राशि का भुगतान करता है। एक बार ये मोरेटोरियम पीरियड पूरा हो जाएं, इसके बाद बीमा कंपनी पॉलिसी होल्डर के ‘क्लेम’ को नॉन-डिस्कोलजर और मिसरिप्रजेंटेशन के आधार पर खारिज नहीं कर सकती है। केवल फ्रॉड के आधार पर ही रिजेक्ट कर सकती है। यानी अगर आपने अपनी स्थिति को छुपाकर या गलत तरीके से पेश करके पॉलिसी ली है तो फिर पॉलिसी वहीं खत्म कर दी जा सकती है और दी हुई पूरी प्रीमियम राशि ज़ब्त कर ली जा सकती है।
इसे उदाहरण से समझें- हेल्थ इंश्योरेंस लेते समय बीमा कंपनी आपका हेल्थ रिकॉर्ड चेक करती है। यानी कहीं आपको डायबीटिज, ब्लड प्रेशर और आर्थरायटिस जैसी कोई बीमारी तो नहीं। इस आधार पर आपको पॉलिसी ऑफर की जाती है। जब आप बीमा के लिए क्लेम करते हैं तो बीमाकंपनी पॉलिसी होल्डर के इस हेल्थ रिकॉर्ड और डॉक्टर के रिपोर्ट का मिलना करती है। अगर झूठ निकलता है तो जानिए बीमा कंपनियां कैसे करती है आपकी हेल्थ इंश्योरेंस का प्रीमियम निर्धारितस्वास्थ्य बीमा कंपनी पॉलिसी होल्डर के क्लेम को खारिज कर सकती है और प्रीमियम राशि जब्त कर सकती है।
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IRDAI ने मोरेटोरियम पीरियड में किया बदलाव
भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) के नियम अनुसार मोरेटोरियम पीरियड (Moratorium Period) पहले 8 साल का हुआ करता था, जिसे अब घटाकर 5 साल के लिए कर दिया गया है। यानी अब पॉलिसीहोल्डर को लगातार 8 साल के बजाय 5 साल के लिए ही ‘प्रीमियम’ भरना होगा। इसके बाद वह अपनी पूरी पॉलिसी राशि के लिए दावा कर सकते हैं। IRDAI ने इस नए नियम की घोषणा अप्रैल 2024 में की है। इसके अलावा प्री- एग्जिस्टिंग डिजीज (PED) के लिए भी वेटिंग पीरियड 4 साल से घटाकर 3 साल कर दिया गया है।
IRDAI के दिशा-निर्देशनुसार स्वास्थ्य बीमा खरीदने से 48 घंटे पहले पता होने वाली बीमारी को प्री- एग्जिस्टिंग डिजीज (PED) कहा जाता है। वहीं, आप जिस अवधि के लिए पॉलिसी क्लेम नहीं कर सकते उसे ‘वेटिंग पीरियड’ कहा जाता है। यह अवधि पूर्व-निर्धारित होती है और आपके पॉलिसी दस्तावेज़ में स्पष्ट रूप से लिखी होती है।
मोरेटोरियम पीरियड का पॉलिसीहोल्डर पर असर
IRDAI ने मोरेटोरियम पीरियम में बदलाव करके पॉलिसी होल्डर्स को बड़ी राहत दी है। मोरेटोरियम पीरियम कम होने से पॉलिसीहोल्डर अब पहले की अपेक्षा जल्दी क्लेम कर सकते है और इसका लाभ उठा सकते हैं। यानी अब लंबे समय तक पॉलिसीहोल्डर को प्रीमियम का भुगतान नहीं करना पड़ेगा। जिससे हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी (Health Insurance Policy) को लेकर लोगों में ज्यादा विश्वास पैदा होगा।
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क्लेम सेटलमेंट नियम क्या है ?
आईआरडीएआई की बेवसाइट के अनुसार क्लोज 27(1) के तहत किसी बीमा कंपनी को पॉलिसीहोल्डर के क्लेम रिक्वेस्ट और आवश्यक दस्तावेज मिलने के 30 दिनों के भीतर स्वीकार या अस्वीकार करना होगा। अगर बीमा कंपनी 30 दिनों के भीतर क्लेम का सेटलमेंट या उसे रिजेक्ट नहीं करती है तो उसे क्लेम रिक्वेस्ट मिलने की तारीख से ही पेनल्टी चार्ज देना होगा, जोकि बैंक में मिलने वाले ब्याज से 2% अधिक होगा।