भारत में निवेश करने के कई विकल्प हैं, जिन में से म्यूचुअल फंड निवेश का सबसे लोकप्रिय साधन बनता जा रहा है। लेकिन म्यूचुअल फंड के इतने प्रकार मौजूद हैं कि लोग इस बात को लेकर कंफ्यूज़ हो जाते हैं कि आखिरकार पैसा लगाएं कहां? तो चलिए आसान शब्दों में म्यूचुअल फंड के अलग-अलग प्रकारों के बारे में जानते हैं, जिससे आप यह तय कर सकेंगे कि किस प्रकार का म्यूचुअल फंड सबसे अच्छा है और आपको अपने पैसे कहां निवेश करने चाहिए।
म्यूचुअल फंड के प्रकार
एसेट क्लास के आधार पर म्यूचुअल फंड के प्रकार
- इक्विटी फंड: इक्विटी फंड के तहत विभिन्न कंपनियों के शेयरों में निवेश किया जाता है। इस तरह के फंड में अधिक रिटर्न मिलने की संभावना होती है, हालांकि, इनमें रिस्क भी ज्यादा होता है। ये लॉन्ग टर्म निवेश के लिए उपयुक्त होते हैं। इक्विटी फंड भी कई प्रकार के होते हैं जिनके बारे में नीचे बताया गया है:-
- लार्ज कैप: शेयर मार्केट में कंपनियों को कैप यानी कैपिटलाइज़ेशन के आधार पर बांटा जाता है। कैपिटलाज़ेशन से कंपनियों की मार्केट वैल्यू का पता चलता है। लार्ज कैप में प्रतिष्ठित और स्थापित कंपनियां शामिल होती हैं जिनकी मार्केट में मज़बूत पकड़ होती है। स्मॉल कैप और मिड कैप के मुकाबले, लार्ज कैप में बाज़ार के उतार-चढ़ाव का कम प्रभाव पड़ता है।
- मिड कैप: इसके अतंर्गत मध्यम आकार की कंपनियां आती हैं, जिनका वैल्यूएशन लार्ज कैप कंपनियों की तुलना में कम होता है। इनके लार्ज कैप में तबदील होने की संभावना अधिक होती है।
- स्मॉल कैप: इसके अतंर्गत छोटी कंपनियां आती हैं, जिनमें निवेश करने पर हाई रिस्क होता है लेकिन मिलने वाला रिटर्न भी काफी हाई होता है। स्मॉल कैप में ग्रोथ काफी तेज़ी से होता है।
- मल्टी कैप: इस तरह के फंड में लार्ज कैप, मिड कैप और स्मॉल कैप तीनों तरह की कंपनियों में निवेश किया जाता है।
- ELSS (इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम): इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम उन लोगों के लिए बढ़िया विकल्प है जो टैक्स में बचत करना चाहते हैं। इसके अतंर्गत इनकम टैक्स अधिनियम,1961 की धारा 80C के तहत टैक्स में 1.5 लाख रु. तक की कटौती का लाभ मिलता है।
- इंटरनेशनल फंड: इसके अतंर्गत भारत के बाहर स्थापित कंपनियों में निवेश किया जाता है।
- डेट फंड: डेट फंड को इक्विटी फंड के मुकाबले ज़्यादा सुरक्षित माना जाता है। क्योंकि इसके अंतर्गत गवर्मेंट और कॉरपोरेट द्वारा जारी की जाने वाली सिक्योरिटीज जैसे कॉरपोरेट बॉन्ड, गवर्मेंट सिक्योरिटीज, ट्रेजरी बिल आदि में निवेश किया जाता है। डेट फंड भी कई प्रकार के होते हैं जैसे -लिक्विड फंड, मनी मार्केट फंड और शॉर्ट ड्यूरेशन फंड।
- हाइब्रिड फंड: हाइब्रिड फंड के तहत इक्विटी और डेट फंड दोनों में निवेश किया जाता है, जिससे बैलेंस बना रहता है। ये फंड उन लोगों के लिए बेस्ट है जो अपने निवेश में कम रिस्क लेना चाहते हैं। इसके साथ ही ऐसे लोग जिन्हें निवेश या शेयर मार्केट की गहराई से जानकारी नहीं होती, उन्हें हाइब्रिड फंड की ओर रुख करना चाहिए। हाइब्रिड फंड भी कई प्रकार के होते हैं जैसे- एग्रेसिव हाइब्रिड फंड, कंजर्वेटिव हाइब्रिड फंड और बैलेंस्ड एडवांटेड हाइब्रिड फंड आदि।
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संरचना के आधार पर म्यूचुअल फंड के प्रकार
- ओपन एंडेड फंड: इस फंड में कोई लॉक-इन अवधि या मैच्योरिटी अवधि नहीं होती। आप ओपन एंडेड फंड में कभी भी निवेश कर सकते हैं और कभी भी इन्हें बंद कर पैसे निकाल सकते हैं। इस तरह के फंड की कोई मैच्योरिटी पीरियड नहीं होती।
- क्लोज़्ड एंडेड फंड: ओपन एंडेड म्यूचुअल फंड से अलग ये फंड लॉक-इन अवधि के साथ आते हैं। इन्हें मैच्योरिटी में ही निकाला जा सकता है।
निवेश के उद्देश्य के आधार पर म्यूचुअल फंड के प्रकार
निवेश करने के उद्देश्य के आधार पर म्यूचुअल फंड को अलग-अलग भागों में बांटा जाता है, चलिए जानते हैं इनके बारे में:-
- ग्रोथ फंड: इस तरह के फंड में ग्रोथ स्टॉक्स में पैसा निवेश किया जाता है। इक्विटी में निवेश की वजह से इन फंड्स में निवेश करना जोखिम भरा हो सकता है। ऐसे में रिस्क को कम करने के लिए लॉन्ग टर्म के लिए इनमें निवेश करने की सलाह दी जाती है।
- लिक्विड फंड: इसके तहत शॉर्ट टर्म के लिए पैसा निवेश किया जाता है। इसमें सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉज़िट, ट्रेजरी बिल व टर्म डिपॉज़िट आदि में पैसा लगाया जाता है। लिक्विड फंड में उन कंपनियों में पैसा निवेश किया जाता है जो अच्छा ग्रोथ कर रहीं होती हैं। हालांकि, इनमें इन्वेस्ट किए गए पैसों पर खतरा बना रहता है।
- टैक्स सेविंग फंड: टैक्स सेविंग फंड में इन्वेस्ट कर आप इनकम टैक्स बेनिफिट्स प्राप्त कर सकते हैं। इसके तहत इनकम टैक्स अधिनियम की धारा 80C के 1.5 लाख रु. तक के टैक्स डिडक्शन का लाभ उठा सकते हैं।
- इनकम फंड: जैसा कि नाम से पता चलता है इस तरह के फंड का उद्देश्य रेगुलर और स्टेबल इनकम प्रदान करना है। इस तरह के फंड को बॉन्ड, गवर्मेंट सिक्योरिटीज और सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉज़िट आदि में निवेश किया जाता है।
कुल मिलाकर, म्यूचुअल फंड में निवेश करने से पहले अच्छी तरह से रिसर्च करना, जोखिम की पहचान करना ज़रूरी है। साथ ही निवेश करने से पहले विशेषज्ञों की राय ज़रूर लें।
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