अगर आप अपने निवेश पर बेहतर रिटर्न पाना चाहते हैं तो कंपाउंड इंटरेस्ट बेहतर ऑप्शन हो सकता है। क्योंकि इसके तहत आपके ब्याज पर ब्याज मिलता है। वो ऐसे कि ब्याज आपके मूलधन में जोड़ा जाता है और फिर इन नए मूलधन या प्रिंसिपल अमाउंट पर ब्याज कैलकुलेट किया जाता है। इस तरह जैसे-जैसे आपका मूलधन बढ़ता जाता है इस पर मिलने वाला रिटर्न में भी इजाफा होता है। जबकि साधारण ब्याज कैलकुलेशन में केवल आपके मूलधन (निवेश की रकम) पर ब्याज दिया जाता है।
उदाहरण के माध्यम से बेहतर समझें- मान लें आप किसी स्कीम में 5 साल के लिए 2 लाख रु. निवेश कर रहे हैं। इस पर 10% इंटरेस्ट रेट मिल रहा है। इस निवेश पर कंपाउंट इंटरेस्ट के तहत मैच्योरिटी के समय आपको 3,22,102 रु. प्राप्त होगा। जबकि इसी परिस्थिति में साधारण ब्याज के तहत मैच्योरिटी पर मिलने वाली राशि 3 लाख रु. होगी। इस तरह साधारण ब्याज की तुलना में कंपाउंड इंटरेस्ट में आपको 1,22,102 रु. का फायदा साफ तौर पर दिख रहा है।
पब्लिक प्रॉविडेंड फंड (पीपीएफ), नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस), फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी), रेकरिंग डिपॉजिट (आरडी), म्यूचुअल फंड और एसआईपी जैसे निवेश विकल्प कंपाउंडिंग इंटरेस्ट देते हैं।
कंपाउंड इंटरेस्ट कैलकुलेट कैसे करते हैं:
कंपाउंड इंटरेस्ट की गणना करने के लिए A = P (1 + r/n) ^ nt फॉर्मूले का इस्तेमाल किया जाता है।
P = प्रिंसिपल अमाउंट (मूलराशि)
A = कंपाउंड इंटरेस्ट (चक्रवृद्धि ब्याज)
R/r = ब्याज दर
N/n = एक साल में कितनी बार कंपाउंट इंटरेस्ट की गणना की गई
T/t = कितने साल के निवेश किया है/ निवेश की कुल अवधि
उदाहरण से समझें- अगर आप 5 साल के लिए 10% इंटरेस्ट रेट पर 50,000 रु. जमा करते हैं। एक साल पर आपका रिटर्न 50,000 x 10/100 या 5,000 रु. होगा।
दूसरे साल के लिए ब्याज की गणना:- 50,000 + 5,000= 55,000. अब ब्याज 5550 रु. होगा।
तीसरे साल ब्याज राशि- 6055 रु. होगी और इसी तरह मैच्योरिटी तक ब्याज कैलकुलेट किया जाएगा।
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कंपाउंडिंग का फायदा
उदाहरण के माध्यम से कंपाउंडिंग का फायदा समझने की कोशिश करते हैं: मान लें, दो व्यक्ति- A और B रिटायरमेंट प्लानिंग के लिए निवेश करते हैं। A 30 की उम्र से 2,000 रु. निवेश करना शुरू कर देता। वहीं, B 45 साल की आयु से 4,000 रु. निवेश करता है। दोनों 60 साल की उम्र तक निवेश करते हैं। इस तरह A और B द्वारा दी गई रकम 7,20,000 रु. हुआ। दोनों एक समान समयावधि के लिए 10% इंटरेस्ट रेट पर जमा करते हैं। चलिए जानते हैं किसका कितना कॉर्पस बनता है:
आयु |
A के लिए |
B के लिए |
30 की उम्र पर |
0 |
|
35 की उम्र पर |
1.6 लाख रु. |
|
40 की उम्र पर |
4.1 लाख रु. |
|
45 की उम्र पर |
8.4 लाख रु. |
0 |
50 की उम्र पर |
15.5 लाख रु. |
3.1 लाख रु. |
55 की उम्र पर |
26.8 लाख रु. |
8.3 लाख रु. |
60 की उम्र पर |
45.58 लाख रु. |
16.71 लाख रु. |
ऊपर बताएं गए उदाहरण में दोनों समान राशि जमा करते हैं, लेकिन फिर भी A की जमाराशि B की तुलना में 2.7 गुना अधिक है। हालांकि मिलने वाला रिटर्न महंगाई, इंटरेस्ट रेट और बाजार के अन्य पहलूओं से प्रभावित हो सकता है। लेकिन उदाहरण से हमें समझ आता है कि जितने ज्यादा समय के लिए आप निवेश करोगे उतना अधिक कंपाउंड इंटरेस्ट का फायदा मिलेगा।
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निष्कर्ष
कंपाउंडिंग का बेहतर तरीके से लाभ उठाने के लिए कम रकम के साथ जल्दी निवेश करना जरूरी है। ये निवेश शॉर्ट टर्म के लिए न होकर लॉन्ग टर्म के लिए हो तो और बेहतर। जितने ज्यादा समय के लिए आप कंपाउंडिंग इंटरेस्ट के तहत निवेश करते हैं उतना अधिक समय के लिए आपके प्रिसिंपल अमाउंट पर ब्याज की गणना की जाती है। साथ ही अनुशासित तरीके से निवेश करना जरूरी है। और जरूरी है निवेश से पहले इसके जोखिमों के बारे में जानना।