फरवरी 2023 में रेपो रेट को 6.25% से 6.5% कर दिया गया था, तब से लेकर रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया गया है। इस साल 6-8 फरवरी तक हुई MPC की मीटिंग में रेपो रेट को लगातार छठी बार बरकरार रखा गया है। समय-समय पर इसी तरह रेपो रेट की बढ़ोतरी या कमी को लेकर न्यूज़ आती है। अक्सर हम ऐसी न्यूज़ को यह सोचकर नज़रअंदाज कर देते हैं कि भला ये हमारे किस काम आएगी। लेकिन अगर आपने किसी बैंक या लोन संस्थान से कोई लोन लिया है, तो रेपो रेट आपको प्रभावित कर सकता है। रेपो रेट के बदलने से आम आदमी पर क्या असर पड़ता है जानने से पहले चलिए रेपो रेट को समझते हैं।
रेपो रेट क्या होता है?
जिस तरह ज़रूरत पड़ने पर आप बैंक से लोन लेते हैं, उसी तरह बैंकों को जब भी पैसों की ज़रूरत पड़ती है, तब वे RBI से कर्ज़ लेते हैं। इस कर्ज़ के बदले उन्हें ब्याज देना पड़ता है। यही ब्याज रेपो रेट कहलाता है। आसान शब्दों में समझें तो, रेपो रेट एक तरह का ब्याज है जिस पर भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) देश के कमर्शियल बैंकों को कर्ज़ देता है। रेपो रेट को रिपरचेसिंग रेट के नाम से भी जाना जाता है।
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रेपो रेट को क्यों बढ़ाया या कम किया जाता है?
महंगाई पर काबू पाने के लिए रेपो रेट बढ़ाया जाता है। महंगाई यानी इंफ्लेशन रेट बढ़ना किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक है। जब आरबीआई को लगता है कि इंफ्लेशन उसकी टॉलरेन्स लिमिट से अधिक बढ़ सकती है, तो वह रेपो रेट बढ़ा देता है। इस तरह बैंक के लिए आरबीआई से लोन लेना महंगा हो जाता है, जिसकी भरपाई के लिए बैंक होम लोन, कार लोन आदि की दरें बढ़ा देते हैं। इससे लोन महंगे हो जाते हैं।
जब लोन महंगे हो जाते हैं तो आम आदमी गैर-ज़रूरी खर्च करना कम कर देते हैं, कम उधार लेते हैं जिससे वस्तुओं और सेवाओं की डिमांड कम हो जाती है। डिमांड कम होने से कीमतों में कमी आती है और इस तरह इंफ्लेशन को काबू किया जाता है। ऐसे में देखा जाए तो रेपो रेट इंफ्लेशन को कंट्रोल करने के एक टूल के रूप में काम करता है। जब आरबीआई को मार्केट में कैश फ्लो बढ़ाना या फिर आर्थिक विकास करना होता है, तब वह रेपो रेट को कम कर देता है।
रेपो रेट में बदलाव होने से आम आदमी पर क्या असर पड़ता है?
रेपो रेट के बढ़ने या कम होने का असर आप और हम जैसे कस्टमर्स पर भी पड़ता है। जैसा कि हमने बताया कि जब रेपो रेट बढ़ता है तो बैंकों के लिए आरबीआई से उधार लेना महंगा हो जाता है क्योंकि उन्हें इस पर अधिक ब्याज भरना पड़ता है। अधिक ब्याज का यह बोझ बैंकों से होते हुए कस्टमर्स पर चला जाता है। मतलब यह है कि रेपो रेट के बढ़ने पर बैंक रेपो रेट से लिंक्ड कोई भी रिटेल लोन जैसे होम लोन, कार लोन, बिज़नेस लोन आदि की ब्याज दरों को बढ़ा देते हैं।
ध्यान रहें, रेपो रेट बढ़ने से लोन की ब्याज दरों में बदलाव आता है, लेकिन जिन लोगों ने बैंक एफडी, आरडी आदि में पैसे जमा किए हैं उन्हें इसका लाभ मिलता है। चूंकि बैंकों को पैसा कस्टमर्स द्वारा खोले गए सेविंग, फिक्स्ड डिपॉज़िट, रिकरिंग डिपॉज़िट आदि से आता है। इसलिए जब रेपो रेट बढ़ता है तो एफडी आदि पर बैंक अधिक ब्याज ऑफर करते हैं। वे ऐसा इसलिए करते हैं जिससे अधिक ब्याज दरों से आकर्षित होकर लोग ज़्यादा से ज़्यादा इंवेस्ट करें।
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निष्कर्ष
रेपो रेट के बढ़ने से ब्याज पर पड़ने वाले प्रभाव को कम करने के लिए अच्छी फाइनेंशियल प्लानिंग, बजट पर खासा ध्यान देने और समझदारी से फैसला लेना ज़रूरी है। अपने लोन के भुगतान को प्रायोरिटी पर रखकर, इमरजेंसी फंड बनाकर और अपने इंवेस्टमेंट को डावर्सिफाई कर आप बढ़ती ब्याज दरों और इंफ्लेशन का सामना कर सकते हैं।