आप जिस प्रॉपर्टी के लिए होम लोन ले रहे हैं, बैंक उसकी वैल्यू का कितना प्रतिशत लोन देगा वही उसका लोन टू वैल्यू रेश्यो (एलटीवी रेश्यो) होगा। यानी किसी आवेदक को कितना लोन मिलेगा, इसके निर्धारण में व्यक्ति की सालाना इनकम और क्रेडिट स्कोर के अलावा LTV रेश्यो एक महत्वपूर्ण फैक्टर है। आइए इस लेख में जानते हैं कि LTV रेश्यो कैसे कैलकुलेट किया जाता है और लोन लेने में इसकी क्या अहमियत है…
क्या है एलटीवी रेश्यो?
LTV रेश्यो आपके लोन का वह अमाउंट होता है जो आप बैंक से कर्ज के रुप में लेना चाहते हैं। बाकी राशि का भुगतान आपको अपनी जेब से करना होता है। उदाहरण से समझें-अगर आप 1 करोड़ रुपये की प्रॉपर्टी खरीद रहे हैं और (आपका) बैंक का LTV रेश्यो 75% है, तो आपको 75 लाख रुपये का ही लोन मिलेगा। बाकी 25 लाख रुपये का पेमेंट आपको अपनी जेब से करना होगा।
इसे एक और उदाहरण से समझें- आप 30 लाख की प्रॉपर्टी के लिए 5 लाख का डाउनपेमेंट करते हैं और 25 लाख रुपये के लोन के लिए अप्लाई करते हैं तो इस केस में एलटीवी 83% ((25 लाख/30 लाख)*100) होगा।
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आरबीआई द्वारा निर्धारित एलटीवी रेश्यो
आरबीआई ने एलटीवी रेश्यो की एक सीमा निर्धारित कर रखी है, जिसके तहत ही बैंक को कस्टमर्स को लोन देना होता है। जैसे बैंक खरीदी जा रही प्रॉपर्टी की कुल वैल्यू का अधिकतम 90% ही लोन दे सकते हैं इससे अधिक नहीं। अलग-अलग लोन अमाउंट के लिए LTV रेश्यो भी अलग है। जैसे 30 लाख रुपये तक की लोन राशि के लिए LTV रेश्यो 90 % तक हो सकता है। 30 से 75 लाख रुपये लोन अमाउंट के लिए एलटीवी रेश्यो 80% से अधिक नहीं हो सकता है और 75 लाख रुपये से अधिक लोन के लिए अधिकतम एलटीवी रेश्यो 75% तय किया गया है। बता दें, बैंक/ लोन संस्थान एलटीवी रेश्यो के माध्यम से यह सुनिश्चित करते हैं कि वह प्रॉपर्टी की कीमत से अधिक लोन राशि न मंजूर कर लें। इसे एक चार्ट के माध्यम से समझें-
लोन राशि |
निर्धारित एलटीवी रेश्यो |
₹30 लाख तक |
90% |
₹30 से ₹75 लाख |
80% |
₹75 लाख से अधिक |
75% |
एलटीवी रेश्यो का कम होना कैसे बेहतर
किसी भी कस्टमर को लोन देने से पहले बैंक उसकी रिपेमेंट क्षमता देखती है। जिसका आकलन वह आवेदक के क्रेडिट स्कोर, जॉब प्रोफाइल और एलटीवी रेश्यो के आधार पर करता है। इसलिए अगर आप जितना ज्यादा डाउनपेमेंट करते हैं, एलटीवी रेश्यो उतना ही कम होता है। परिणामस्वरूप बैंक के लिए वह लोन कम जोखिम वाला होगा तो आपको कम इंटरेस्ट रेट पर लोन मिल सकता है। इसके उलट बैंक प्रॉपर्टी की वैल्यू के हिसाब से जितना ज़्यादा लोन देता है उसका जोखिम भी उतना ही ज़्यादा बढ़ता जाता है, और जोखिम जितना ज़्यादा होता है ब्याज दर भी उतनी ज़्यादा ही बढ़ सकती है।