नौकरी करने वाले प्रत्येक कर्मचारी को हर महीने सैलरी स्लिप मिलती है। लेकिन बहुत से कर्मचारी सैलरी स्लिप में इस्तेमाल होने वाले सभी पहलुओं को और इसके महत्व को नहीं जानते। तो चलिए इस लेख में सैलरी स्लिप से जुड़े सभी अहम जानकारियों के बारे में जानते हैं:
सैलरी स्लिप क्या है?
सैलरी स्लिप या पे स्लिप (Salary Slip/Pay Slip) वो डॉक्यूमेंट होता है जो कोई कंपनी प्रति माह अपने कर्मचारियों को देती है। इसमें एचआरए (हाउस रेंट अलाउंस), LTA (लीव ट्रैवल अवाउंस), बोनस जैसी चीजें शामिल होती है।
सैलरी स्लिप या तो ऑफलाइ पेपर के रुप में ले सकते हैं या फिर इसे कोई कंपनी ई-मेल के जरिए भी भेज सकती है। अगर कोई छोटी कंपनी प्रति माह सैलरी स्लिप देने में असमर्थ है तो कर्मचारी उस कंपनी से सैलरी सर्टिफिकेट की मांग कर सकते हैं।
सैलरी स्लिप का महत्व
- इनकम टैक्स भरने में मददगार- सैलरी स्लिप के आधार पर ही इनकम टैक्स कैलकुलेशन किया जाता है। एक वित्तीय वर्ष में इनकम टैक्स रिटर्न (आईटीआर) फाइल करते समय सैलरी स्लिप की मदद से यह जान सकते हैं कि कितना टैक्स भरना है और कितना रिफंड होगा।
- सैलरी स्लिप की अच्छी समझ- सैलरी स्लिप में EPF और ESI जैसे घटक होते हैं जिनमें हर कर्मचारी को निवेश करना ही होता है। अगर कोई कर्मचारी इन योजनाओं में निवेश नहीं करना चाहता है तो वह ऐसी योजनाओं में निवेश कर सकता है जिनमें अधिक रिटर्न मिलता हो। लेकिन ऐसा सैलरी स्लिप की अच्छी समझ के बाद ही हो सकता है।
- लोन लेने में मददगार- किसी लोन संस्थान के लिए आवेदक की सैलरी स्लिप उसका इनकम प्रूफ होता है। किसी आवेदक को लोन देने से पहले बैंक व एनबीएफसी उसके पिछले दो-तीन महीनों की सैलरी स्लिप मांगते है। यानी लोन मंजूरी में सैलरी स्लिप की काफी अहम भूमिका है।
- इंप्लायमेंट का सबूत- सैलरी स्लिप जरूरी कानूनी दस्तावेज होते हैं। जो अकसर ट्रैवल विज़ा या यूनिवर्सिटी आवेदन करते समय मांगे जाते है। ये जानने के लिए कि आप किस कंपनी में काम करते हैं और किस पद पर, सैलरी स्लिप इस बात का भी सबूत होता है।
सैलरी स्लिप के कंपोनेंट
सैलरी स्लिप के घटकों को दो भागों में समझा जा सकता है- इनकम (आय) और कटौती। इनके बारे में नीचे विस्तार से बताया गया है:
इनकम
- बेसिक सैलरी- यह वेतन का सबसे महत्वपूर्ण घटक है और आमतौर पर कुल वेतन का लगभग 35% से 40% होता है। साथ ही इसके आधार पर ही सैलरी स्लिप के विभिन्न अन्य घटकों का निर्धारण किया जाता है।
- महंगाई भत्ता- यह कर्मचारी पर महंगाई के प्रभाव को कम करने के लिए दिया जाने वाला भत्ता है। इसलिए यह अलग-अलग स्थानों के लिए अलग-अलग होता है। यह आमतौर पर बेसिक सैलरी का 30-40% होता है। DA को आयकर उद्देश्यों के लिए भुगतान माना जाता है इसलिए यह टैक्सेबल होता है। हालांकि महंगाई भत्ता (डीए) केवल सरकारी कर्मचारियों को ही दिया जाता है।
- मकान किराया भत्ता (एचआरए)- HRA कर्मचारियों को उनके द्वारा भुगतान किए गए मकान किराए के लिए दिया जाने वाला भत्ता है। एचआरए किराए के घर के स्थान पर आधारित होता है और आमतौर पर बेसिक सैलरी का लगभग 40% से 50% होता है।
- छुट्टी पर ट्रैवल अलाउंस- यह छुट्टी के दौरान कर्मचारी के ट्रैवल खर्च को कवर करने के लिए दिया जाने वाला भत्ता है। Leave Travel Allowance (LTA) सीटीसी का हिस्सा होता है और आमतौर पर वार्षिक लाभ के रुप में दिया जाता है। कुछ मामलों में टैक्स बेनिफिट भी मिल सकता है, जिसके लिए यात्रा करने का सबूत दिखाना होगा।
- वाहन और मेडिकल भत्ता- घर से ऑफिस और ऑफिस से घर जाने के लिए जो वाहन खर्चा होता है, उसके भत्ते के लिए Conveyance allowance दिया जात है। यह प्रति माह 1,600 रु (19,200 सालाना) हो सकता है। इस पर कर में छूट का लाभ मिलता है। इसी तरह कर्मचारी के चिकित्सा खर्चों को कवर करने के लिए चिकित्सा भत्ता/मेडिकल भत्ता दिया जाता है यदि राशि प्रति वर्ष 15,000 रुपये से अधिक है, तो यह कर योग्य हो जाता है।
नोट- वित्त वर्ष 2019-20 से कर्मचारियों को वाहन और चिकित्सा भत्ते के स्थान पर 50,000 रुपये की मानक कटौती (Standard Deduction) प्रदान की जाती है।
- परफॉर्मेंस बोनस और स्पेशल अलाउंस- कर्मचारियों को उनके बेहतर परफॉर्मेंस के लिए परफॉर्मेंस बोनस दिया जाता है। वहीं, स्पेशल अलाउंस कंपनियों में अलग-अलग उद्देश्यों से दिया जाता है। इसलिए ये एक कंपनी से दूसरे कंपनी में भिन्न-भिन्न हो सकता है।
- अन्य अलाउंस- कोई नियोक्ता अलग-अलग उद्देश्यों से किसी कर्मचारी को विभिन्न अलाउंस ऑफर कर सकता है। इन अलाउंस को कर्मचारी अपनी पसंद के अनुसार ‘Other Allowances’ में शामिल कर सकता है।
डिडक्शन या कटौती
- कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ)- कर्मचारी के सैलरी से प्रति माह उसकी बेसिक सैलरी का 12% हिस्सा ईपीएफ में जमा किया जाता है। कंपनी भी समान राशि कर्मचारी के ईपीएफ अकाउंट (रिटायरमेंट फंड) में जमा करती है।
- प्रोफेशनल टैक्स- यह कर्मचारी को उसके टैक्स स्लैब के अनुसार भरना होता है। यह एक राज्य से दूसरे राज्य में अलग-अलग हो सकता है। यह राशि टैक्सबल इनकम से कट कर ली जाती है और सैलरी स्लिप के डिडक्शन साइड दिखाई देती है।
- स्रोत पर कर कटौती (टीडीएस)- इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की तरफ से कोई कंपनी किसी कर्मचारी की सैलरी स्लिप से टीडीएस कट करती है। टीडीएस की राशि कर्मचारी के टैक्स स्लैब समेत अन्य पहलूओं पर निर्भर करता है ।
सैलरी स्लिप से इनकम टैक्स में कैसे बचत करें?
एक सैलरी स्लिप में हाउस रेंट अलाउंस (HRA), महंगाई भत्ता (DA) और मेडिकल अलाउंस जैसे कई घटक शामिल होते हैं। जिसकी मदद से कर्मचारी एक वित्तीय वर्ष में टैक्स में बचत कर सकता है। क्योंकि कर्मचारियों की सैलरी का स्ट्रक्चर इस तरह का होता है कि टैक्स बेनिफिट प्राप्त किया जा सके।
उदाहरण के लिए- अगर किसी कर्मचारी की मासिक सैलरी सभी डिडेक्शन के बाद 50,000 रु है तो इस पर इनकम टैक्स कट किया जाएगा। लेकिन इनकम टैक्स सेविंग इंस्ट्रमेंट जैसे-नेशनल पेंशन स्कीम, इक्विटी, ELSS आदि में निवेश करके टैक्स में बचत की जा सकती है।
सैलरी स्लिप से जुड़ें सवाल
क्या हस्तलिखित सैलरी स्लिप कानूनी होता है?
हस्तलिखित सैलरी स्लिप (Handwritten Salary Slips) का महत्व भी इलेक्ट्रॉनिक सैलरी स्लिप जितना ही होता है। बैंक से लोन लेते समय हस्तलिखित सैलरी स्लिप की फोटो कॉपी इनकंम प्रूफ के तौर पर दे सकते हैं।
ऑनलाइन सैलरी स्लिप कैसे निकालें?
कोई कंपनी या संस्थान किसी कर्मचारी को प्रति माह ई-मेल के जरिए सैलरी स्लिप देती है। कर्मचारी किसी भी माह की सैलरी स्लिप प्रिंट या डाउनलोड कर सकते हैं। इसे डाउनलोड करने के लिए कंपनी के पेरोल सॉफ्टवेयर में जाएं कंपनी के आंतरिक पोर्टल पर जाएं।
क्या बैंक लोन देने से पहले सैलरी स्लिप के बारे में पूछते हैं?
अधिकतर बैंक लोन आवेदक से इनकम प्रूफ के तौर पर उसकी पिछले 2-3 महीनों की मंथली पे स्लिप मांगते हैं। क्योंकि लोन राशि निर्धारण में आवेदक का इनकम महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
सैलरी स्लिप का क्या महत्व है?
सैलरी स्लिप किसी कर्मचारी के लिए इनकम का कानूनी प्रूफ होता है। ये लोन लेने से लेकर आईटीआर फाइल करने तक में मददगार होता है। साथ ही सैलरी स्लिप से पता चलता है कि कोई कर्मचारी पहले किस कंपनी में काम कर रहा था और वहां उसकी कितनी सैलरी थी।
प्रोफेशनल टैक्स क्या है?
प्रोफेशनल टैक्स राज्य सरकार द्वारा चार्टर्ड एकाउंटेंट, डॉक्टरों और वकीलों सहित नौकरीपेशा कर्मचारियों और पेशेवरों द्वारा अर्जित आय पर लगाया जाने वाला टैक्स होता है। प्रोफेशनल टैक्स को अलग- अलग राज्यों में अलग-अलग तरीके से कैलकुलेट किया जाता है। सरकार इस टैक्स से प्राप्त रेवेन्यू का इस्तेमाल रोजगार गारंटी योजना और रोजगार गारंटी कोष में करती है।